Bal Kand : Ramcharitmanas Bal Kand रामचरितमानस बाल काण्ड, पाठ, विडियो

Ramcharitmanas Bal Kand

चले राम लछिमन मुनि संगा। गए जहाँ जग पावनि गंगा।।
गाधिसूनु सब कथा सुनाई। जेहि प्रकार सुरसरि महि आई।।
तब प्रभु रिषिन्ह समेत नहाए। बिबिध दान महिदेवन्हि पाए।।
हरषि चले मुनि बृंद सहाया। बेगि बिदेह नगर निअराया।।
पुर रम्यता राम जब देखी। हरषे अनुज समेत बिसेषी।।
बापीं कूप सरित सर नाना। सलिल सुधासम मनि सोपाना।।
गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा। कूजत कल बहुबरन बिहंगा।।
बरन बरन बिकसे बन जाता। त्रिबिध समीर सदा सुखदाता।।

दो0-सुमन बाटिका बाग बन बिपुल बिहंग निवास।
फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहुँ पास।।212।।

.

बनइ न बरनत नगर निकाई। जहाँ जाइ मन तहँइँ लोभाई।।
चारु बजारु बिचित्र अँबारी। मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी।।
धनिक बनिक बर धनद समाना। बैठ सकल बस्तु लै नाना।।
चौहट सुंदर गलीं सुहाई। संतत रहहिं सुगंध सिंचाई।।
मंगलमय मंदिर सब केरें। चित्रित जनु रतिनाथ चितेरें।।
पुर नर नारि सुभग सुचि संता। धरमसील ग्यानी गुनवंता।।
अति अनूप जहँ जनक निवासू। बिथकहिं बिबुध बिलोकि बिलासू।।
होत चकित चित कोट बिलोकी। सकल भुवन सोभा जनु रोकी।।

दो0-धवल धाम मनि पुरट पट सुघटित नाना भाँति।
सिय निवास सुंदर सदन सोभा किमि कहि जाति।।213।।

.

सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा। भूप भीर नट मागध भाटा।।
बनी बिसाल बाजि गज साला। हय गय रथ संकुल सब काला।।
सूर सचिव सेनप बहुतेरे। नृपगृह सरिस सदन सब केरे।।
पुर बाहेर सर सारित समीपा। उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा।।
देखि अनूप एक अँवराई। सब सुपास सब भाँति सुहाई।।
कौसिक कहेउ मोर मनु माना। इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना।।
भलेहिं नाथ कहि कृपानिकेता। उतरे तहँ मुनिबृंद समेता।।
बिस्वामित्र महामुनि आए। समाचार मिथिलापति पाए।।

दो0-संग सचिव सुचि भूरि भट भूसुर बर गुर ग्याति।
चले मिलन मुनिनायकहि मुदित राउ एहि भाँति।।214।।

.

कीन्ह प्रनामु चरन धरि माथा। दीन्हि असीस मुदित मुनिनाथा।।
बिप्रबृंद सब सादर बंदे। जानि भाग्य बड़ राउ अनंदे।।
कुसल प्रस्न कहि बारहिं बारा। बिस्वामित्र नृपहि बैठारा।।
तेहि अवसर आए दोउ भाई। गए रहे देखन फुलवाई।।
स्याम गौर मृदु बयस किसोरा। लोचन सुखद बिस्व चित चोरा।।
उठे सकल जब रघुपति आए। बिस्वामित्र निकट बैठाए।।
भए सब सुखी देखि दोउ भ्राता। बारि बिलोचन पुलकित गाता।।
मूरति मधुर मनोहर देखी। भयउ बिदेहु बिदेहु बिसेषी।।

दो0-प्रेम मगन मनु जानि नृपु करि बिबेकु धरि धीर।
बोलेउ मुनि पद नाइ सिरु गदगद गिरा गभीर।।215।।

.

कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक। मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक।।
ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा। उभय बेष धरि की सोइ आवा।।
सहज बिरागरुप मनु मोरा। थकित होत जिमि चंद चकोरा।।
ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ। कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ।।
इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा। बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा।।
कह मुनि बिहसि कहेहु नृप नीका। बचन तुम्हार न होइ अलीका।।
ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी। मन मुसुकाहिं रामु सुनि बानी।।
रघुकुल मनि दसरथ के जाए। मम हित लागि नरेस पठाए।।

दो0-रामु लखनु दोउ बंधुबर रूप सील बल धाम।
मख राखेउ सबु साखि जगु जिते असुर संग्राम।।216।।

.

मुनि तव चरन देखि कह राऊ। कहि न सकउँ निज पुन्य प्राभाऊ।।
सुंदर स्याम गौर दोउ भ्राता। आनँदहू के आनँद दाता।।
इन्ह कै प्रीति परसपर पावनि। कहि न जाइ मन भाव सुहावनि।।
सुनहु नाथ कह मुदित बिदेहू। ब्रह्म जीव इव सहज सनेहू।।
पुनि पुनि प्रभुहि चितव नरनाहू। पुलक गात उर अधिक उछाहू।।
म्रुनिहि प्रसंसि नाइ पद सीसू। चलेउ लवाइ नगर अवनीसू।।
सुंदर सदनु सुखद सब काला। तहाँ बासु लै दीन्ह भुआला।।
करि पूजा सब बिधि सेवकाई। गयउ राउ गृह बिदा कराई।।

दो0-रिषय संग रघुबंस मनि करि भोजनु बिश्रामु।
बैठे प्रभु भ्राता सहित दिवसु रहा भरि जामु।।217।।

.

लखन हृदयँ लालसा बिसेषी। जाइ जनकपुर आइअ देखी।।
प्रभु भय बहुरि मुनिहि सकुचाहीं। प्रगट न कहहिं मनहिं मुसुकाहीं।।
राम अनुज मन की गति जानी। भगत बछलता हिंयँ हुलसानी।।
परम बिनीत सकुचि मुसुकाई। बोले गुर अनुसासन पाई।।
नाथ लखनु पुरु देखन चहहीं। प्रभु सकोच डर प्रगट न कहहीं।।
जौं राउर आयसु मैं पावौं। नगर देखाइ तुरत लै आवौ।।
सुनि मुनीसु कह बचन सप्रीती। कस न राम तुम्ह राखहु नीती।।
धरम सेतु पालक तुम्ह ताता। प्रेम बिबस सेवक सुखदाता।।

ChemiCloud - Excellent Web Hosting Services

दो0-जाइ देखी आवहु नगरु सुख निधान दोउ भाइ।
करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन देखाइ।।218।।

मासपारायण, आठवाँ विश्राम

नवान्हपारायण, दूसरा विश्राम
.

1 thought on “Bal Kand : Ramcharitmanas Bal Kand रामचरितमानस बाल काण्ड, पाठ, विडियो”

Leave a Comment