Ram Raksha Stotra in Hindi, LYRICS, PDF, Download | श्री राम रक्षा स्तोत्रम् एक बहुत ही शक्तिशाली मन्त्र है. इस स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही शुभ फलदायक होता है. इस राम रक्षा स्तोत्र के पाठ करने से प्रभु श्री राम अपने भक्त की सभी तरह की संकटों से रक्षा करतें हैं.
इस मन्त्र का प्रभाव बहुत ही व्यापक है. श्री राम रक्षा स्तोत्रम् ( Ram Raksha Stotra in Hindi ) का प्रभाव अवस्य होता है. यह मन्त्र बहुत ही शक्तिशाली है.अगर इस मन्त्र को सम्पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ किया जाए तो इसका प्रभाव कभी भी निष्फल नहीं जाता है.
श्री राम रक्षा स्तोत्रम् ऋषि बुध कौशिक द्वारा रचित किया गया है. यह मन्त्र प्रभु भगवान श्रीराम जी की स्तुति ( Ram Stuti ) करने के लिए रचित किया गया है. कहतें हैं की स्वयं भगवान शिव शंकर ने स्वपन में ऋषि बुध कौशिक को राम रक्षा स्तोत्र के बारे में बताया था.
राम रक्षा स्तोत्र में ऋषि बुध कौशिक ने बिभिन्न नामो द्वारा राम जी की स्तुति की है. इसमें भगवान श्री राम प्रभु के गुणों का वर्णन है. इसका पाठ बहुत ही सरल और आनंद दायक होता है.
किसी भी प्रकार के भय से मुक्ति के लिए राम रक्षा स्तोत्र का पाठ बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता है. समस्त तरह के शारीरिक व्याधियों में भी इस राम रक्षा स्तोत्र का पाठ बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता है.
इसके अलावा इस राम रक्षा स्तोत्र के अन्य लाभ भी हैं. इस मन्त्र के उपयोग करने के कई तरीके भी हैं. जिनके संबंद्ध में हम निचे चर्चा करेंगे.
Ram Raksha Stotra in Hindi
जय श्री राम. निचे राम रक्षा स्तोत्र को संस्कृत में दिया जा रहा है. उसके पश्चात निचे आप लोगों को राम रक्षा स्तोत्र का हिंदी अनुवाद मिलेगा. उसके पश्चात इसे पाठ करने का तरीका, फिर इसके पाठ से क्या-क्या लाभ होता है, फिर राम रक्षा स्तोत्र का पीडीऍफ़ डाउनलोड ( Ram Raksha Stotra in written in Hindi in PDF ) का लिंक मिलेगा. जिस पर क्लिक करके आप इसे डाउनलोड कर सकतें हैं. इस अंक में आप लोगों को राम रक्षा स्तोत्र का विडियो भी मिलेगा. जिसे आप डायरेक्ट देख सकतें हैं.
|| श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ||
श्रीगणेशायनम: |
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य |
बुधकौशिक ऋषि: |
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता |
अनुष्टुप् छन्द: | सीता शक्ति: |
श्रीमद्हनुमान् कीलकम् |
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ||
|| अथ ध्यानम् ||
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं |
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ||
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं |
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ||
|| इति ध्यानम् ||
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् |
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् || 1 ||
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् |
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् || 2 ||
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् |
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् || 3 ||
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् |
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: || 4 ||
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती |
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: || 5 ||
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: |
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: || 6 ||
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् |
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: || 7 ||
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: |
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् || 8 ||
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: |
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: || 9 ||
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् |
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् || 10 ||
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: |
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: || 11 ||
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् |
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति || 12 ||
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् |
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: || 13 ||
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् |
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् || 14 ||
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: |
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: || 15 ||
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् |
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: || 16 ||
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ |
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ || 17 ||
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ |
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ || 18 ||
श्री राम रक्षा स्तोत्र
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् |
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ || 19 ||
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ |
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् || 20 ||
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा |
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: || 21 ||
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली |
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: || 22 ||
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: |
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: || 23 ||
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: |
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: || 24 ||
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् |
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: || 25 ||
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् |
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् |
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् || 26 ||
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे |
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: || 27 ||
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम |
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम |
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम |
श्रीराम राम शरणं भव राम राम || 28 ||
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि |
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि |
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि |
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये || 29 ||
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: |
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: |
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु |
नान्यं जाने नैव जाने न जाने || 30 ||
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा |
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् || 31 ||
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् |
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये || 32 ||
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् |
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये || 33 ||
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् |
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् || 34 ||
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् |
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् || 35 ||
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् |
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् || 36 ||
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे |
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: |
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् |
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर || 37 ||
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे |
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने || 38 ||
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ||
|| श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ||
Ram Raksha Stotra in written in Hindi
राम रक्षा स्तोत्र हिंदी अर्थ
श्रीगणेशायनम: |
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य |
बुधकौशिक ऋषि: |
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता |
अनुष्टुप् छन्द: | सीता शक्ति: |
श्रीमद्हनुमान् कीलकम् |
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ||
अर्थ : इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं |
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं |
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ||
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं |
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ||
अर्थ : ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें |
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् |
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् || 1 ||
अर्थ : श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है |
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् |
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् || 2 ||
अर्थ : नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके,
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् |
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् || 3 ||
अर्थ : जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् |
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: || 4 ||
अर्थ : मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ | राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें |
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती |
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: || 5 ||
अर्थ : कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें |
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: |
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: || 6 ||
अर्थ : मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें |
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् |
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: || 7 ||
अर्थ : मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें |
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: |
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: || 9 ||
अर्थ : मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें |
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् |
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् || 10 ||
अर्थ : शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं |
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: |
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: || 11 ||
अर्थ : जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते |
Ram Raksha Stotra Hindi
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् |
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति || 12 ||
अर्थ : राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है |
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् |
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: || 13 ||
अर्थ : जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं |
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् |
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् || 14 ||
अर्थ : जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं |
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: |
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: || 15 ||
अर्थ : भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया |
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् |
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: || 16 ||
अर्थ : जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ |
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ || 17 ||
अर्थ : जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं |
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ |
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ || 18 ||
अर्थ : जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें |
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् |
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ || 19 ||
अर्थ : ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा त्राण करें |
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ |
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् || 20 ||
अर्थ : संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें |
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा |
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: || 21 ||
अर्थ : हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें |
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रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली |
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: || 22 ||
अर्थ : भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: |
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: || 23 ||
अर्थ : वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: |
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: || 24 ||
अर्थ : नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं |
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् |
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: || 25 ||
अर्थ : दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता |
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् |
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् |
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् || 26 ||
अर्थ : लक्ष्मण जी के पूर्वज , सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे |
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: || 27 ||
अर्थ : राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ |
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम |
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम |
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम |
श्रीराम राम शरणं भव राम राम || 28 ||
अर्थ : हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए |
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि |
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि |
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि |
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये || 29 ||
अर्थ : मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ |
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: |
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: |
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु |
नान्यं जाने नैव जाने न जाने || 30 ||
अर्थ : श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं | इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता |
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा |
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् || 31 ||
अर्थ : जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ |
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् |
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये || 32 ||
अर्थ : मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ |
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मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् |
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये || 33 ||
अर्थ : जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ |
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् |
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् || 34 ||
अर्थ : मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ |
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् |
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् || 35 ||
अर्थ : मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं |
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् |
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् || 36 ||
अर्थ : ‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं |
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे |
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: |
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् |
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर || 37 ||
अर्थ : राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ | श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ | हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें |
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे |
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने || 38 ||
अर्थ : (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ |
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ कैसे करें?
- राम रक्षा स्तोत्र ( Ram Raksha Stotra in Hindi ) का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है.
- प्रातः काल और संध्या काल का समय राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने के लिए बहुत ही उत्तम होता है.
- राम रक्षा स्तोत्र को आप एक बार रोजाना पढ़ सकते हैं.
- आप अगर राम रक्षा स्तोत्र ( Ram Raksha Stotra in Hindi ) को 11 एग्यारह बार पाठ करते हैं. तो इसका बहुत ही शुभ प्रभाव पड़ता है.
- अगर आप चालीस दिनों तक रोजाना ग्यारह बार राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करते हैं. तो इसका प्रभाव बहुत दिनों तक रहता है.
- मंगलवार और शनिवार के दिन राम रक्षा स्तोत्र ( Ram Raksha Stotra Hindi ) का पाठ करना बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है.
- हनुमान जयंती, राम नवमी, नवरात्री के दिनों में राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही शुभ होता है.
- सर्व प्रथम अपने नित्य कर्म को करके स्नान आदि कर लें.
- उसके पश्चात किसी स्वच्छ आसन पर बैठें.
- फिर गंगाजल से खुद को और अपने आस-पास को सुद्ध कर लें.
- फिर किसी चौकी या फिर ऊँची जगह पर एक स्वच्छ आसन रखें.
- उस आसन पर राम जी की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें.
- धुप-दीप जलाएं.
- उसके पश्चात सम्पूर्ण श्रद्धा और श्री राम जी के प्रति सम्पूर्ण बिस्वास को रखते हुए राम रक्षा स्तोत्र ( Ram Raksha Stotra in Hindi ) का पाठ करें.
- पाठ करने के समय भगवान श्री राम जी के प्रति सम्पूर्ण श्रद्धा रखें.
- पाठ करने के पश्चात भगवान श्री राम जी की आरती करें.
- उसके पश्चात भगवान श्री रामचंद्र जी से अपने लिए रक्षा करने का वरदान मांगे.
Ram Raksha Stotra Benefits in Hindi
राम रक्षा स्तोत्र से लाभ
- श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही शुभ फलदायक होता है.
- राम रक्षा स्तोत्र के पाठ से भगवान श्री राम चन्द्र जी की कृपा प्राप्ति होती है.
- जो भी भक्त सम्पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव से इस राम रक्षा स्तोत्र ( Ram Raksha Stotra ) का पाठ करता है. उसे भगवान श्री राम चन्द्र जी सदा अपनी कृपा दृष्टि में रखतें हैं.
- इस प्रसिद्द स्तोत्र का पाठ करने से भगवान श्री राम चन्द्र जी अपने भक्त की सदा सभी तरह की संकटों से रक्षा करतें हैं.
- राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से सभी तरह की रोगों और व्याधियों से मुक्ति मिलती है.
- जीवन में आई हुई सभी तरह के समस्याओं से मुक्ति भगवान् श्री राम चन्द्र जी की कृपा से मिलती है.
- जीवन में सुख और शान्ति आती है.
- सफलता की प्राप्ति इस राम रक्षा स्तोत्र के नियमित पाठ से मिलती है.
- जीवन में समृद्धि आती है.
- राम रक्षा स्तोत्र का पाठ सम्पूर्ण श्रद्धा और बिस्वास के साथ करें. साथ हिन् बुरे कर्मों से खुद को दूर रखें. सदा शुभ और अच्छे कर्म करें.
- अपना आत्म बिस्वास बनाए रखें. समस्याओं से हार नहीं माने. प्रभु श्री राम जी पर बिस्वास रखें और अपना कर्म सम्पूर्ण समर्पण से करतें रहें. प्रभु श्री राम चन्द्र जी अवस्य आपको जीवन में कामयाबी और सफलता देंगे.
Ram Raksha Stotra in Hindi Download
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Ram Raksha Stotra in Hindi PDF
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आप इस राम रक्षा स्तोत्र को प्रिंट करके भी रख सकतें हैं. जिससे आप जब चाहे इसका पाठ कर सकतें हैं.
Ram Raksha Stotra written in Hindi PDF
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राम रक्षा स्तोत्र के प्रकाशन में सम्पूर्ण रूप से सावधानी राखी गयी है. फिर भी अगर कहीं कोई त्रुटी रह गयी हो या फिर कहीं कोई गलती हो गयी हो तो कृपया हमें कमेंट करके बताएं. हम उस गलती को सुधारने की पूरी कोशिश करेंगे.
अगर आप कोई सुझाव या सलाह देना चाहते हैं. या फिर अगर आपके कोई सुझाव या सलाह हो तो हमें अवस्य बताएं.
प्रभु श्री राम चन्द्र जी आप सभी की समस्त प्रकार के संकटों से हमेशा रक्षा करें.
जय श्री राम.
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